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रंग परसाई स्वतंत्रतापूर्व साहित्य का जायजा लेना हो तो, प्रेमचंद का साहित्य और स्वातंत्रोत्तर भारत का सही जायजा लेने के लिए हरिशंकर परसाई। आजादी के बाद के मोहभंग को परसाई ने जिस मुखरता से अभिव्यक्त किया है,उसकी दूसरी मिसाल हिन्दी में दुर्लभ है। विसंगतियो को उजागर करने में उनकी जैसी महारता किसी के पास नही। मैनें परसाई जी की व्यंग सूक्तियो को अपनी रेखाओ का आधार बना कर जो कूछ भी रचा है,वह परसाई जी की रचना का विस्तार ही है। आज से तीन बरस पहले से परसाई जी के शब्दो को चित्रो मे सँजोता रहा हूँ।
4 टिप्पणियां:
adhikar de denge to log bhagwan ke ghar hi paida hona pasand karenge
Very Good
KYA KAHOON SIR APSE EK ANURODH HAI,APNE SHEHER KI GALLERY MAIN PADHARNE KA KASTH KAREIN.
APKA SWAGAT HAI.
YE BLOG DIN BA DIN LOKPRIYA HO INHI SHUBHKAMNAON KE SATH APKA EK PRASHANSHAK.
SHAKTI PRAJAPATI
Dear Rajesh,
To match Parsaiji's satire in cartoon sketches needed a talented person like you. I am not sure if any one else could have done better! Keep enthralling us like this.
Mickey
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