शुक्रवार, 22 अगस्त 2008
बुधवार, 16 जुलाई 2008
शुक्रवार, 11 जुलाई 2008
बुधवार, 9 जुलाई 2008
मंगलवार, 8 जुलाई 2008
शनिवार, 5 जुलाई 2008
रविवार, 29 जून 2008
शुक्रवार, 27 जून 2008
शनिवार, 21 जून 2008
रंग परसाई
रंग परसाई
स्वतंत्रतापूर्व साहित्य का जायजा लेना हो तो, प्रेमचंद का साहित्य और स्वातंत्रोत्तर भारत का सही जायजा लेने के लिए हरिशंकर परसाई।
आजादी के बाद के मोहभंग को परसाई ने जिस मुखरता से अभिव्यक्त किया है,उसकी दूसरी मिसाल हिन्दी में दुर्लभ है। विसंगतियो को उजागर करने में उनकी जैसी महारता किसी के पास नही। मैनें परसाई जी की व्यंग सूक्तियो को अपनी रेखाओ का आधार बना कर जो कूछ भी रचा है,वह परसाई जी की रचना का विस्तार ही है। आज से तीन बरस पहले से परसाई जी के शब्दो को चित्रो मे सँजोता रहा हूँ। समय समय पर उन्हे संशोधित व परिमार्जित भी करता रहा हूँ। मेरे ये कार्टून रंग परसाई के नाम से प्रकाशित एक पुस्तिका के रुप में हो चुके है। इन कार्टूनो की प्रदर्शनी देश के अनेक स्थानो पर लगाई जा चुकी है। मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, प्रतिवर्ष इसकी प्रदर्शनी आयोजित करता आ रहा है।
किसी भी व्यंग लेखक की रचनाओ पर किया गया ,यह अपने तरह का पहला प्रयोग है। मैं इसमे कहाँ तक सफल रहा,यह आपकी टिप्पणीयो से पता चलेगा। उद्देश्य बस यहीं है कि ज्यादा से ज्यादा लोग परसाई जी रचनाओ को पढे और सही अर्थो मे समझे। चूँकि मेरा मानना है,कि परसाई आपका ,आपसे सच्चा परिचय कराते है,और एक बेहतर मनुष्य और समाज की रचना करते है।
स्वतंत्रतापूर्व साहित्य का जायजा लेना हो तो, प्रेमचंद का साहित्य और स्वातंत्रोत्तर भारत का सही जायजा लेने के लिए हरिशंकर परसाई।
आजादी के बाद के मोहभंग को परसाई ने जिस मुखरता से अभिव्यक्त किया है,उसकी दूसरी मिसाल हिन्दी में दुर्लभ है। विसंगतियो को उजागर करने में उनकी जैसी महारता किसी के पास नही। मैनें परसाई जी की व्यंग सूक्तियो को अपनी रेखाओ का आधार बना कर जो कूछ भी रचा है,वह परसाई जी की रचना का विस्तार ही है। आज से तीन बरस पहले से परसाई जी के शब्दो को चित्रो मे सँजोता रहा हूँ। समय समय पर उन्हे संशोधित व परिमार्जित भी करता रहा हूँ। मेरे ये कार्टून रंग परसाई के नाम से प्रकाशित एक पुस्तिका के रुप में हो चुके है। इन कार्टूनो की प्रदर्शनी देश के अनेक स्थानो पर लगाई जा चुकी है। मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, प्रतिवर्ष इसकी प्रदर्शनी आयोजित करता आ रहा है।
किसी भी व्यंग लेखक की रचनाओ पर किया गया ,यह अपने तरह का पहला प्रयोग है। मैं इसमे कहाँ तक सफल रहा,यह आपकी टिप्पणीयो से पता चलेगा। उद्देश्य बस यहीं है कि ज्यादा से ज्यादा लोग परसाई जी रचनाओ को पढे और सही अर्थो मे समझे। चूँकि मेरा मानना है,कि परसाई आपका ,आपसे सच्चा परिचय कराते है,और एक बेहतर मनुष्य और समाज की रचना करते है।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)